सोचते हो क्या है करना अब हमें रह कर यहाँ
और बहुत काम हैं ज़िंदगी जीने के सिवा
और बहुत काम हैं इस दौर में करने के लिए...
रो के तो करता हर कोई ग़म अपना यूँ ही बयान
और बहुत काम हैं छुप छुप के यूँ रोने के सिवा
बहाने हैं बहुत ग़म छोड़ के हँसने के लिए..
ढूंढते हो मिट गये से ख़ुद के क़दमों के निशां?
और बहुत काम हैं यूँ राह भटकने के सिवा..
तरीक़े हैं बहुत मंज़िल को पहुँचने के लिए..
क्यूं तुम्हें अनजान पराई भीड़ सा लगता जहाँ..
और बहुत काम हैं अकेले यूँ ही रहने के सिवा
रास्ते हैं बहुत अपनों को खोजने के लिए..
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें