गुरुवार, 30 जुलाई 2015

abhimaan

अभिमान

जो आ सकती इस दुनिया में, अपने बेटे की गाथा को
गौरव को , और अभिमान को , कह कविता में बतलाती मैं

जो छू सकती , दोनों हाथों को लगा तुम्हारे माथे पर
दे दे दुआएं दे न थकती , जो आज तुम्हें फिर पाती मैं

जो ले सकती, तो ले लेती सारी बलाएँ - बाधाएं
इक इक मुश्किल का पल , तुम्हारे तमगे खुद लगाती मैं

जो देख सकती, तो घंटों, पहरों , सप्ताहों तक केवल
मैं देखा करती बस तुमको और कह कुछ भी ना पाती मैं

जो कर सकती , अपनी पलकों को बिछा तुम्हारे पैरों में
बहते अश्रु मेरे अविरल , हर  छाले को सहलाती मैं

इक ऐसा मेरा बेटा है , गौरव में जिसके जीती हूँ
गर होती तो ये कह कह के बस फूली नहीं समाती मैं

जो पा सकती ,  तो ले लेती  इक जन्म और इस धरती पर
कह  ईश्वर से तुमको ही फिर से पुत्र रूप में पाती मैं


देश, मम्मी और हम सब को आप पर गर्व है
देश वापसी पर स्वागत, बधाइयाँ और सम्मान!