लो बीत गया एक संपूर्ण अध्याय
चौदह वर्ष तक जो निरंतर किया
अब कभी नहीं करेंगे फिर..
अलसाई सुबहों में ख़ुद को ढालना..
बस्ते के बोझ दबी सयकले घसीटना
घंटी की आवाज़ सुन क़तारों में खड़े हो जाना..
झाँकना वो प्रार्थना के लिए बंद आँखों से..
मुझे दे दो..
मुझे वापस दे दो मेरा स्कूल..
मुझे दिला दो वो बीते साल..
वो प्रार्थना सभायें ,गीत , सुर, ताल..
क्या लौटा सकते हो वो पल?
शायद नहीं..
कभी नहीं..
बीते क्षण लौट कर आ भी तो नहीं सकते..
हाँ यादों में ज़िंदा तो रह सकते हैं वे
मुझे याद है अब भी स्कूल का वो पहला दिन ..
जब मैने अपने आप को इस नई जगह पाया
इसे जाना और साथ ही सीखा स्वयं को पहचानना
और मेरी पहचान का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया यह
और अब इसी पहचान को साथ ले..
एक और पहचान की खोज में
इसे छोड़ के जाना है
क्या हुआ जो बीत गया एक अध्याय.. एक शुरू भी तो हुआ है
हुआ है ना...
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