सोमवार, 17 दिसंबर 2007

उनके लिए..

हंसी मैं , पिघल के मेरे ग़म सारे बह गए..
किया क्या, कि इस पल में बस हम ही रह गए..
हर इक शै में जो समां था, मेरा हो गया..
दे दिया जहाँ मुझको ,ये क्या वो कह गए..

तेरे बिन जो बीते दिन हैं,जाने किस तरह गए
फुरकत तेरी ये जाने, हम कैसे सह गए...
क़त्ल भी कर देते तो किस्सा तमाम था..
तेरे हाथ से जो बिखरे, मौसम वो रह गए..