जिसे पाने उमर भर, तरसती रही है नज़र
दिखला के बस इक झलक,यों झपकते ही पलक
क्यूं हो जाता है जुदा...
ए ज़िंदगी तू ही बता...
फिर नयी रातें हैं , नये सपनों की बातें हैं
लगता है जो कुछ अपना, उन्हीं सपनों में एक सपना..
क्यूं है तड़क कर टूटता..
ए ज़िंदगी तू ही बता...
खा कर रहम नसीब, आ कर ज़रा क़रीब, देता है एक पल का सुख..
पर अगले पल तो है फिर दुख
ऐसी क्या हुई है मुझसे ख़ता..
ए ज़िंदगी तू ही बता...
सपने भी हैं और चाह भी मंज़िल भी है और राह भी..
आगे बढ़ के एक क़दम, पाँव क्यूं जाते हैं थाम
मुझे ख़ुद भी नहीं है पता..
ए ज़िंदगी तू ही बता...
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