मंगलवार, 20 फ़रवरी 2007

पैबंद ...



साँस लेने को हवा भी है तरसती;

प्यास से व्याकुल औ' बदली है बरसती;

है जहाँ पर नहीं कोई पासवाँ ,

जी रहा है एक मुट्ठी आसमाँ...


ये छायाचित्र भी एक झोंपड़ी के भीतर से (मेरे द्वारा ) लिया गया है 

कोई टिप्पणी नहीं: