मंगलवार, 20 फ़रवरी 2007

पैबंद ...



साँस लेने को हवा भी है तरसती;

प्यास से व्याकुल औ' बदली है बरसती;

है जहाँ पर नहीं कोई पासवाँ ,

जी रहा है एक मुट्ठी आसमाँ...


ये छायाचित्र भी एक झोंपड़ी के भीतर से (मेरे द्वारा ) लिया गया है 

एक झोंपड़ी के भीतर...



कुछ टिम-टिम उजाले,
हैं इसको संभाले,
वैसे तो यहाँ पर अंधेरा घना है..
इक चौके का कोना,
इक छोटा बिछौना,
और आशाओं से घर ये मेरा बना है..

ये छायाचित्र भी एक झोंपड़ी के भीतर से (मेरे द्वारा ) लिया गया है 

रविवार, 18 फ़रवरी 2007

जा रही रवि की सवारी..


किरण राथ धुंधला पड़ा है

नभ ज्यों तारों से जडा है

इसी नभ की स्वर्ण आभा पर रजत अब पड़ी भारी

जा रही रवि की सवारी



पाने को जो खड़े थे सुख

अब खड़े हैं फेर के मुख

भूल कर इस ही रवि की आरती भी थी उतारी

जा रही रवि  की सवारी



लो गमन का अब समय है

किंतु ये होना भी तय है

सुबह आने को पड़ी है रात कारी अब ये सारी

जा रही रवि की सवारी

This poem is inspired from

aa rahi ravi ki savari..


 

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2007

आँसू...

हुआ यूँ की जो भी देखा सब नम नज़र आया
ज़मीन पे दर्ज सीलन था शाम का साया
गीली रही थी चाँदनी था कितना सुखाया
सिल्ली सा बर्फ़ चाँद पिघलता हुआ पाया
सीली रात के छीटंों को पोंछ दिन चला आया
बरसता हर एक लम्हा बकाया था चुकाया
गला रुंधा ;टूटा था , कैसे कैसे दिल ये भर आया
पलकें जहाँ झपकी वहीं आँसू छलक आया..

यादें..

सुनसान रहें,रास्ते के पत्थर,
उड़ते पंछी,पीछा करता चाँद
टूटे फूल ,वो मुलाक़ातें ..
बस यादें

बोलती ख़ामोशी,चलते क़दम,
अनोखे अंदाज़ ,परिचित से वक्तव्य
वही प्रश्न,अपूर्ण बातें ..
अधूरी मुरादें..

अनदेखे ख्वाब,अनजाने राज़..
सुना सा शोर,पढ़े हुए पुर्ज़े,
गिरते हुए पर्दे, अनोखी रातें,
कुछ कर ना दें..

नाम सी आँखें, बहते आँसू..
ढहते स्वप्न,डूबती कश्ती..
कौन सा तूफ़ान, कैसी बरसातें..
ये फ़रियादें..

यादें..

जवाब

ये मैने कहा कब

कि हो मेरे हक़ में

तुम्हारे पास कोई

"जवाब" तो हो..

 

क्यूं कहते हो उससे??

आज मैने चाँद को देखा..

या ये कहा जाए की वो फिर से मुझे दिख गया..

आज कुछ उदास था..

कुछ कुछ पीला सा..

पूछने पर कि "क्या हुआ ?"

कुछ कहा भी नहीं!

हाँ , वैसे भी..

मुझसे कहाँ कुछ कहता है वो..

.. तुम ही ने कहा होगा..



अब रहेगा ऐसे ही मुँह फुलाए

ना अपनी कहेगा, ना तुम्हारी सुनाएगा

बस चलता रहेगा चुपचाप

क्षितिज पर ,मेरे साथ..

इस छोर से उस छोर तक

फिर बिना कुछ कहे गुम हो जाएगा..

... तुम ही ने कहा होगा..



तुम्हारा हाल कह सकता है है वो..

दिखावा करता है है मेरे सामने..

जलाता है मुझे ये जता कर

कि तुम्हें देख सकता है

परेशन करता है मुझे चुप रहकर..

मुझे नहीं बताएगा मैं जानती हूँ..

.. तुम ही ने कहा होगा..

क्यूं कहते हो उससे??