हुआ यूँ की जो भी देखा सब नम नज़र आया ज़मीन पे दर्ज सीलन था शाम का साया गीली रही थी चाँदनी था कितना सुखाया सिल्ली सा बर्फ़ चाँद पिघलता हुआ पाया सीली रात के छीटंों को पोंछ दिन चला आया बरसता हर एक लम्हा बकाया था चुकाया गला रुंधा ;टूटा था , कैसे कैसे दिल ये भर आया पलकें जहाँ झपकी वहीं आँसू छलक आया..