मंगलवार, 30 जून 2009

साँस

एक साँस लौटी, कुछ देर ठहरी , कुछ सकुचाई..
खिड़की के छज्जे पर थोडा सा अलसाई..
अलाव को तापने फिर भीतर चली आई..
कहाँ अकेली फिर, बिछौने पर खेली फिर
नींदों के झोंकों से पकड़म पकड़ाई
किरणों के सपनों में जम्हाई-अंगड़ाई॥
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यह कविता मेरी प्रिया सखी प्राजक्ता की एक छोटी प्यारी कविता को पढने के बाद मैंने लिखी॥
आप चाहें तो प्राजक्ता की कविता यहाँ पढ़ सकते हैं : http://manaskruti.blogspot.com/2009/03/blog-post.html

3 टिप्‍पणियां:

Dr. Amarjeet Kaunke ने कहा…

apki is kavita me apne ek bahut hi khubsurat pal ki tasveerkashi ki hai....schmuch aisi kavita likhna, aise kshno ko shabdon me pakrna bahut kathin hai...boond me smunder...dr.amarjeet kaunke@yahoo.co.in

Divya Patni ने कहा…

ruchira i have seen ur website it is ammazing ,and no words to describe its creativeness

Unknown ने कहा…

i cant explain only feel...........